Add To collaction

अंहकार मनुष्य का दुश्मन है



अंहकार मनुष्य का दुश्मन है

मैं से चलें न दुनिया
मैं से चमके न भाग्य
मैं से किया अगर दोस्ती तो
जागे फिर उसका दुर्भाग्य
अंहकार मनुष्य का दुश्मन है।
क्यों गुरुर है इतना हमें
न उम्र है तेरे हाथों में, न सांसे है तेरे वश में
चार दिनों की है ये जिंदगी
मैं ही लाती है आंधी,मुसीबतों की
अंहकार मनुष्य का दुश्मन है।
मत देना तवज्जों अहंकार को
मैं बड़ा दुष्ट शैतान है
जिसने भी त्यागा मैं को
वही कहलाया है इंसान
अंहकार मनुष्य का दुश्मन है।
मैं से तकलीफ इतना होती है कि
इंसान को जिंदा लास बना देती है
ये जिंदगी है प्यारें, हंसने हंसाने के लिए
मैं तो हमें,रोना सीखा देती है
अंहकार मनुष्य का दुश्मन है।
स्वार्थ परत अहंकार ही
विवेक हीनता की ज्वाला है
अशांति लाती है, कहर बरपाती है
मैं ही करें,जीवन को सत्यानाश
अंहकार मनुष्य का दुश्मन है।

नूतन लाल साहू



   14
1 Comments

बहुत खूब

Reply